Bangladesh के हालात पर भारत की चिंता
Bangladesh में तख्तापलट के बाद जो स्थिति है, वह अत्यंत चिंताजनक है। खासकर, अल्पसंख्यक हिंदुओं को जिस तरह टारगेट किया जा रहा है, वह और भी चिंताजनक है। इस परिस्थिति में भारत के सामने दोहरी चुनौती भी है और चिंता भी। पहला वहां कैसे लोकतंत्र बहाल हो सकता है और दूसरा अल्पसंख्यक हिंदुओं को कैसे सुरक्षा प्रदान की जा सकती है। बांग्लादेश में जिस तरह हिंदुओं और मंदिरों को तोड़ा जा रहा है, उससे जाहिर होता है कि मुस्लिम बाहुल्य देशों में हिन्दू बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं।
Bangladesh में तख्तापलट के बाद प्रधानमंत्री shekh Hasina के देश छोड़ने के बाद ही हिंदुओं की स्थिति ऐसी नहीं है, बल्कि पहले से ही Bangladesh में hindu को टारगेट किया जाता रहा है, जिससे वहां हिंदुओं की आबादी लगातार घटती आई है। 1947 के बाद से ही राजनीतिक घटनाओं के परिणामस्वरूप बांग्लादेश की हिंदू आबादी को काफी नुकसान उठाना पड़ा। बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान उन्हें विशेष रूप से निशाना बनाया गया, क्योंकि कई पाकिस्तानियों ने उन्हें अलगाव के लिए दोषी ठहराया, जिसके परिणामस्वरूप हिंदू समुदायों के खिलाफ लक्षित हत्याएं, बलात्कार और अन्य मानवाधिकार हनन हुए। निश्चित ही, यह बात चौंकाती है कि बांग्लादेश में हिन्दू जनसंख्या आज मात्र 9 प्रतिशत रह गई है, जबकि 1947 में यह 30 प्रतिशत थी। यह बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के दावे को पूरी तरीके से झूठलाता है। बांग्लादेश में यह स्थिति तब है, जब बांग्लादेश को भारत का सबसे अच्छा मित्र पड़ोसी देश माना जाता है और वहां पर लंबे समय से सत्ता में रही शेख हसीना को भारत का हितैषी माना जाता है, इसका सबसे ताजा और मजबूत प्रमाण यह है कि जब उन्होंने देश छोड़ा तो सबसे पहले भारत की ही शरण ली।
1971 में pakistan से अलग होने के बाद बांग्लादेश ने जल्द ही एक नई पहचान स्थापित कर ली थी। प्रारंभिक वर्षों में बांग्लादेश ने एक धर्मनिरपेक्ष संविधान और समाज की ओर कदम बढ़ाया, लेकिन समय के साथ, खासकर तख्तापलटों और राजनीतिक अस्थिरता के कारण, हिंदू समुदाय के खिलाफ अत्याचार और हमलों की घटनाओं में इज़ाफा होता चला गया। बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के कारण बहुत जटिल रहे हैं। इनमें धार्मिक कट्टरता, राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक उन्माद का उपयोग और अल्पसंख्यकों के खिलाफ सांस्कृतिक पूर्वाग्रह जैसी जटिलताएं हैं। बांग्लादेश के विभिन्न हिस्सों में हिन्दू मंदिरों, धर्मस्थलों और निजी संपत्तियों पर हमले किए जाते रहे हैं। यह हिंसा अक्सर राजनीतिक दलों द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए की जाती है, जिससे उनकी आस्था और सुरक्षा प्रभावित हो जाए। यह एक कड़वा सच है कि बागलादेश में नए राजनीतिक नेतृत्व के सत्ता में आते ही, समाज में धार्मिक तनाव बढ़ जाता है और हिंदू समुदाय को इन विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। विशेषकर चुनावों के समय या राजनीतिक अस्थिरता के दौरान, अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाओं में तेजी देखी जाती रही है।
बांग्लादेश की वर्तमान परिस्थितियों में india की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, खासकर हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए। इसके लिए भारत सरकार को वहां बनी अंतरिम सरकार के साथ लगातार और प्रभावी संवाद बनाए रखना होगा, जिससे यह सुनिश्चित करना आसान होगा कि बांग्लादेशी सरकार अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील है और उसके खिलाफ होने वाली हिंसा पर कठोर कार्रवाई करे।
दूसरा, हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने की आवश्यकता है। इसके लिए भारत को वैश्विक मंच पर बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा को लेकर आवाज उठानी होगी और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस मुद्दे पर जागरूक करना होगा। वहीं, bangladesh में हिंसा प्रभावित हिंदू समुदायों को राहत देने के लिए मानवीय सहायता प्रदान की जा सकती है। इसके अंतर्गत चिकित्सा, पुनर्वास और पुनर्निर्माण के लिए सहायता शामिल हो सकती है। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना भी एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इससे न केवल लोगों के बीच समझदारी बढ़ेगी, बल्कि साम्प्रदायिक सौहार्द को भी बढ़ावा मिलेगा।
Hindu community in Bangladesh की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दोनों देशों के बीच सुरक्षा और खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान भी आवश्यक होगा, इससे किसी भी प्रकार के संभावित हमलों को पहले ही रोकने में मदद मिल सकती है। हालांकि, बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा केवल भारत की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि वैश्विक समुदाय का भी एक साझा प्रयास होना चाहिए, लेकिन यह सुनिश्चित भारत की पहल पर ही हो सकता है। भारत के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि बांग्लादेश में ऐसी सरकार न हो जो उसके हितों के लिए हानिकारक हो। इससे शरणार्थियों के बड़े पैमाने पर पलायन और पिछले 15 वर्षों में बहुत प्रयासों से स्थापित कनेक्टिविटी, व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों के उलट जाने से बचा जा सकेगा। पिछले डेढ़ दशक में भारत ने बांग्लादेश के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने में निवेश किया है, जिसके परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं - जिसमें हमारे पूर्वोत्तर का विकास भी शामिल है। बांग्लादेश हमारी 'पड़ोसी पहले' नीति का एक प्रमुख स्तंभ रहा है, लिहाजा एक स्थिर, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश ही भारत के हित में है।
वर्तमान परिस्थितियों में बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों को विभिन्न प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ सकता है। यहां कुछ प्रमुख कारण हैं:
1. धार्मिक असहिष्णुता : कुछ धार्मिक समूहों द्वारा हिन्दू धर्म के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण और असहिष्णुता।
2. राजनीतिक लाभ : चुनावी राजनीति में हिन्दू समुदाय को निशाना बनाना और उनके खिलाफ हिंसा भड़काना।
3. साम्प्रदायिक हिंसा : विभिन्न सांप्रदायिक झगड़े और हिंसक घटनाएँ, जिनमें हिन्दू समुदाय को लक्षित किया जाता है।
4. न्यायिक असमानता : अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव के मामलों में कानूनी कार्रवाई की कमी।
5. धार्मिक स्थल पर हमले : हिन्दू मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर हमले और तोड़फोड़।
6. जमीन और संपत्ति का छीनना : हिन्दू सम्पत्ति और जमीन पर कब्जा करने के प्रयास और अवैध कब्जे।
7. शैक्षणिक और आर्थिक भेदभाव : शिक्षा और रोजगार के अवसरों में भेदभाव और कम अवसर।
8. सांस्कृतिक बहिष्करण : हिन्दू संस्कृति और परंपराओं को तिरस्कार का सामना करना और सांस्कृतिक पहचान की अनदेखी।
9. सामाजिक भेदभाव : समाज में हिन्दू समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह और भेदभावपूर्ण व्यवहार।
10. सुरक्षा की कमी : अल्पसंख्यक क्षेत्रों में पुलिस और सुरक्षा बलों की अपर्याप्त सुरक्षा और प्रतिक्रिया।
ये कारण हिन्दू अल्पसंख्यकों को बांग्लादेश में विभिन्न चुनौतियों और खतरों का सामना कराते हैं।
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