झारखंड में सीएम चेहरे को लेकर क्यों अजमंजस में है बीजेपी ?
आगामी विधानसभा चुनावों (Assembly election 2024) को लेकर Jharkhand में राजनीतिक पार्टियों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। यहां हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन सरकार चल रही है, इसीलिए विधानसभा चुनावों में मुख्य चुनौती bjp के सामने है, जिस तरह लोकसभा चुनावों में Narendra Modi के चेहरे पर बीजेपी को आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली, उसकी वजह से विधानसभा चुनावों में बीजेपी किस चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ेगी, वह सबसे बड़ी चुनौती रहने वाली है। राज्य गठन के बाद बीजेपी ने Jharkhand में निश्चित ही अपनी उपस्थिति को मजबूत किया, लेकिन वर्तमान में पार्टी को जिस तरह विभिन्न मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ रहा है, वह अत्यधिक चिंताजनक है।
पहले बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी का नाम आगे किया था। अब अर्जुन मुंडा की भी एंट्री हो गई है। लोकसभा चुनाव में हार के बाद मुंडा विधानसभा की किसी सुरक्षित क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में, मतदाताओं के सामने इस बात को लेकर संशय रहेगा कि आखिरकार, बीजेपी का सीएम चेहरा इस बार कौन होगा ? लोकसभा चुनाव का परिणाम जिस तरह आशाजनक नहीं रहा, उससे एक बात तो स्पष्ट हो चुकी है कि नरेंद्र मोदी का चेहरा अब फीका पड़ चुका है, इसलिए पिछली बार की तरह उनके चेहरे पर भी बीजेपी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहेगी, लेकिन चेहरा जाने बगैर मतदाता कैसे भरोसा करेंगे कि उनका सीएम कौन होगा, यह सबसे बड़ा सवाल है ?
दरअसल, मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित होने से मतदाताओं के सामने तस्वीर क्लियर रहती है कि संबंधित चेहरा राज्य के विकास के लिए कितना महत्वपूर्ण होगा। यह एक स्पष्ट नेतृत्व का संकेत भी देता है, जो मतदाताओं को इस बात के लिए आश्वस्त करता है कि चुनाव जीतने के बाद सरकार उसी के नेतृत्व में बनेगी। मुख्यमंत्री का चेहरा एक प्रकार की चुनावी पहचान बन जाता है, जो जनता के बीच विश्वास और समर्थन जुटाने का काम करता है।
राज्य में बीजेपी चुनावी तैयारी के तहत अपनी सहयोगी पार्टी आजसू के साथ सबसे अधिक सक्रिय दिख रही है। बीजेपी के चुनाव प्रभारियों के लगातार दौरे हो रहे हैं। कभी केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान आ रहे हैं तो कभी असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा आ रहे हैं। बीजेपी के लिए अच्छी बात यह है कि 14 लोकसभा सीटों के तहत आने वाली 81 विधानसभा क्षेत्रों में उसे इस खराब हालत में भी 52 सीटों पर बढ़त मिली है, इसलिए उसे उम्मीद है कि मंजिल फतह की जा सकती है। पार्टी इसको भुनाने की कोशिश भी कर रही है, इसीलिए अभिनंदन सभाओं के माध्यम से बीजेपी नेता मतदाताओं के प्रति आभार जता रहे हैं, जिसके लिए पार्टी नेता जिलों का भी दौरा कर रहे हैं, लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा नहीं करना यह साबित करता है कि पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कन्फ्यूजन है। निश्चित ही, यह कन्फ्यूजन पार्टी के लिए एक रणनीतिक चुनौती पेश कर सकती है। भले ही, इसके पीछे पार्टी के भीतर कई संभावित उम्मीदवारों का होना है और अभी तक किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनी है। बीजेपी आलाकमान यह भी सोच सकता है कि मुख्यमंत्री का चेहरा न घोषित करने से संभावित विरोधियों को भ्रमित करने में मदद मिलेगी, जिससे पार्टी को माइलेज मिल सकता है।
फिर भी, इस स्थिति के कई जोखिम भी हैं। सबसे महत्वपूर्ण जोखिम यह है कि जब मतदाताओं को स्पष्ट नेतृत्व का संकेत नहीं मिलता, तो उनका समर्थन कमजोर पड़ सकता है। यह स्थिति में पार्टी की चुनावी रणनीति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। मतदाता उस नेतृत्व की तलाश में होते हैं, जिसे वे पहचानते हैं और जिस पर विश्वास कर सकते हैं। जब पार्टी ऐसा चेहरा प्रस्तुत नहीं करती, तो यह मतदाताओं में असमंजस और संकोच उत्पन्न करता है। दूसरा, विरोधी दल इस स्थिति का लाभ उठाकर बीजेपी की नेतृत्वहीनता को प्रचारित करेंगे। झारखंड की राजनीति में क्षेत्रीय मुद्दे और स्थानीय नेता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, मुख्यमंत्री का चेहरा न घोषित करने से पार्टी के खिलाफ नकारात्मक प्रचार को बढ़ावा मिल सकता है। इसके अलावा, यह पार्टी के आंतरिक विवादों को भी उजागर कर सकता है, जो चुनावी समन्वय को प्रभावित करेगा।
इन सब परिस्थितियों में पार्टी को निश्चित ही यह ध्यान रखने की जरूरत होगी कि भले ही लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भी वोट मिलते हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में ऐसा संभव नहीं होने वाला है। खासकर तब, जब 2014 की तरह मोदी के चेहरे पर बीजेपी को इस बार का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना है। इसलिए बीजेपी को अपने सीएम फेस का खुलासा करना ही होगा। सामने वाले गठबंधन का चेहरा स्पष्ट है यानी हेमंत सोरेन के चेहरे पर ही इंडिया ब्लॉक चुनाव लडेगी, इंडिया ब्लॉक ने इसी चेहरे पर इस बार लोकसभा की पांच सीटें झारखंड में जीती हैं, जो विधानसभा चुनावों में भी उसे माइलेज दे सकती है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए बीजेपी को रणनीतिक उपाय करने होंगे। पार्टी के भीतर यदि सामूहिक नेतृत्व को प्रदर्शित किया जाता है और एक संयुक्त मंच पर पार्टी की नीतियों और योजनाओं को प्रस्तुत किया जाता है तो इससे बेहतर समाधान का रास्ता प्रशस्त हो सकता है। पार्टी को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि चुनावी प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री की भूमिका और पार्टी के विकासात्मक एजेंडे को स्पष्ट रूप से जनता के सामने रखा जाए, लेकिन इन सबके बीच आदिवासी चेहरे पर दांव लगाना पार्टी को फायदा दे सकती है। इस सूची में सीता सोरेन, गीता कोड़ा, सुदर्शन भगत, समीर उरांव और अर्जुन मुंडा जैसे चेहरे हैं, लेकिन इसको लेकर बीजेपी की चिंता यह हो सकती है कि लोकसभा के लिए अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पांच सीटों पर उसे इस बार हार का सामना करना पड़ा है। इन पांच संसदीय सीटों के अंतर्गत विधानसभा की 28 सीटें आती हैं। कुल मिलाकर, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी पुरानी रणनीति के तहत ही चुनाव लड़ेगी या फिर इस बार सीएम चेहरा घोषित किया जाता है।
झारखंड में बीजेपी की सीएम चेहरे को लेकर अजमंजस के मुख्य कारण
1. आंतरिक मतभेद : बीजेपी के अंदर विभिन्न गुटों के बीच सीएम चेहरे को लेकर मतभेद हैं, जिससे पार्टी एक साझा उम्मीदवार तय करने में असमर्थ है।
2. पूर्व नेतृत्व की आलोचना : पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की कार्यशैली और प्रदर्शन को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर आलोचना है, जो भविष्य के सीएम चेहरे को लेकर संदेह पैदा करता है।
3. जनसाधारण की अपेक्षाएं : जनता की उम्मीदें और अपेक्षाएं विभिन्न हैं, और पार्टी एक ऐसा उम्मीदवार ढूंढ रही है जो व्यापक जनसमर्थन प्राप्त कर सके।
4. विपक्ष की रणनीति : झारखंड में विपक्ष की सक्रियता और उनकी सीएम उम्मीदवार की पेशकश भी बीजेपी को प्रत्याशी चयन में मुश्किलें पैदा कर रही है।
5. स्थानीय नेताओं की महत्वाकांक्षाएं : झारखंड के स्थानीय नेताओं की खुद की महत्वाकांक्षाएं और सीएम बनने की इच्छा भी पार्टी के निर्णय को प्रभावित कर रही है।
6. संगठनात्मक स्थिति : बीजेपी की संगठनात्मक स्थिति झारखंड में मजबूत नहीं है, जिससे एक प्रभावी और स्वीकार्य सीएम चेहरे की पहचान में कठिनाई हो रही है।
7. आर्थिक और सामाजिक मुद्दे : राज्य में आर्थिक और सामाजिक मुद्दे प्रकट हो रहे हैं, और पार्टी को एक ऐसा उम्मीदवार चाहिए जो इन समस्याओं का समाधान कर सके।
8. पार्टी की छवि : बीजेपी की राष्ट्रीय छवि और झारखंड की स्थानीय राजनीति के बीच सामंजस्य बिठाना चुनौतीपूर्ण है, जिससे सीएम चेहरे का चयन कठिन हो रहा है।
9. पार्टी की रणनीति : बीजेपी की राज्यस्तरीय रणनीति और राष्ट्रीय रणनीति के बीच तालमेल बनाए रखना भी एक चुनौती है।
10. चुनाव की तैयारी : आगामी चुनावों की तैयारी और पार्टी की चुनावी रणनीति भी सीएम चेहरे के चयन पर प्रभाव डाल रही है, जिससे असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
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