सर्जिकल स्ट्राइक पर न करें सियासत, बेहतर होगा मूलभूत समस्याओं को मुद्दा बनाएं

भारतीय सेना द्बारा पीओके में की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। जहां कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यह कहकर केन्द्र सरकार को घ्ोर चुके हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने 'जवानों के खून की दलाली’ की है। वहीं, दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल सर्जिकल स्ट्राइक पर केन्द्र सरकार से सबूतों की मांग कर चुके हैं। अब सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती भी मैदान में कूद पड़ी हैं। उन्होंने रविवार को कांशीराम की पुण्यतिथि के मौके पर केन्द्र सरकार को सर्जिकल स्ट्राइक मामले में आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक करने में केन्द्र सरकार ने देर की है। अगर, मोदी सरकार ने समय से सर्जिकल स्ट्राइक की होती तो उड़ी जैसी घटना नहीं होती। उन्होंने यह भी कहा कि महज सियासी फायदे के लिए केन्द्र सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक की है। 
 यहां यह समझना जरूरी है कि भले ही विरोधी पार्टियों ने केन्द्र सरकार पर सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर कई आरोप लगाए हैं, लेकिन इतना तो साफ हुआ है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने लगी है। जिस प्रकार भारत ने उड़ी हमले के बाद पाक को दुनिया के मंच पर घ्ोरा है, उससे पाकिस्तान की छवि बुरी तरह धूमिल हुई है। सेना द्बारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के सियासी सूरमाओं और सेना को भारतीय सेना की ताकत का अहसास भी हो गया है।
 लिहाजा, अब कोई भी पाकिस्तानी नेता परमाणु हमले की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। अगर, यहां भारतीय राजनीति के सूरमाओं की बात की जाए तो वे भी किसी भी रूप में कम नहीं हैं। इस वक्त जब उन्हें सरकार और सेना के साथ खड़ा होना चाहिए और विश्व समुदाय में सेना की ताकत और देश की एकजुटता का परिचय दिया जाना चाहिए, ऐसे मौके पर एक-दूसरे की टांग खींचा जाना कितना जायज है? वह भी सेना द्बारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक के मामले में। 
ऐसी पार्टियों और नेताओं को यह समझ लेना चाहिए कि वे सर्जिकल स्ट्राइक के मामले में भले ही अपनी राजनीतिक रोटियों को सेंकने की पुरजोर कोशिश कर लें, लेकिन इसका नुकसान उन्हें ही भोगना होगा। असल में, देश की जनता भी यह समझती है कि सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर की जा रही बयानबाजी के पीछे नेताओं और राजनीतिक पार्टियों की मंशा क्या है? वे क्यों इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं? जब सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी, तब तो सभी राजनीतिक पार्टियों ने सरकार के साथ खड़े होने की बात 
की थी। 
सभी ने केन्द्र सरकार और सेना को इसके लिए समर्थन भी किया, लेकिन जैसे ही यूपी के चुनावी मंच पर नेता पहुंच रहे हैं तो वे क्यों यह भूल रहे हैं कि जिस सर्जिकल स्ट्राइक का वे पहले समर्थन कर चुके हैं, उस पर अब सियासी फायदा तलाशने के लिए केन्द्र सरकार को क्यों घ्ोर रहे हैं? हां, कोई अन्य मुद्दा होता तो वह समझ में आता है, लेकिन जब देश की सुरक्षा से संबंधित सवाल हो तो उसमें सियासी फायदा तलाशने का प्रयास आम जनमानस को अवश्य झकझोरता है। लिहाजा, यही कहा जाना चाहिए कि यूपी में सियासी फायदा तलाशना ही है तो पार्टियां वहां की मूलभूत समस्याओं का गणित समझें और जनता के बीच में जाएं। ऐसा करने से ही पार्टियों की नैया पार लगेगी। 

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