पाकिस्तान के नए गठजोड़ की तलाश में भी हैं कई व्यावहारिक दिक्कतें
भारतीय सेना द्बारा पीओके में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिए जाने की घटना को बहुत अधिक वक्त नहीं बीता है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान भारत से हर मोर्चे पर विफल साबित हुआ है। हालांकि उसके बाद भी सीमा पार से पाकिस्तान की नापाक हरकतें जारी हैं, लेकिन भारतीय सेना की सजगता के चलते उसकी कोई भी नापाक हरकत सफल नहीं हो पा रही है। दूसरी तरफ, कूटनीतिक मोर्चे पर जिस तरह की चेतावनी पाकिस्तान को दी गई है, उससे वह बहुत अधिक पेशान है। यूएन की महासभा में खरी-खोटी सुनने के बाद सार्क देशों के बीच भी पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है। यहां तक कि पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन का जब भारत ने बहिष्कार किया तो उसके साथ कई सार्क देश खड़े हो गए, जिसकी वजह से सार्क सम्मेलन को अनिश्चितकाल के लिए टाल देना पड़ा।
सार्क सम्मेलन का भारत द्बारा बहिष्कार किए जाने का बांग्लादेश, अफगानिस्तान व भूटान आदि देशों ने समर्थन किया। मालदीव, नेपाल और श्रीलंका से भारत की अपेक्षा पाकिस्तान के अधिक बेहतर संबंध हैं, लेकिन ये देश भी भारत द्बारा सार्क सम्मेलन के बहिष्कार का विरोध नहीं कर पाए। इससे साफ था कि उड़ी सैन्य कैंप पर हमले का असली गुनहगार पाकिस्तान ही था। जो देश आतंकवाद और आतंकियों का पनाहगार हो, उसका समर्थन कैसे किया जा सकता है? दुनिया के अन्य देशों के अलावा सार्क देशों के सदस्य देश भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं। इसीलिए वो भी भारत की खिलाफत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
दुनियाभर में पाकिस्तान की किरकिरी होने के बाद उसके करीबी देश भी भला कैसे भारत के खिलाफ हुंकार भर पाते? लेकिन अब सार्क सम्मेलन के टलने के इतर पाकिस्तान जिस पैंते से भारत को घेरने के लिए जिस नए क्षेत्रीय गठजोड़ की संभावनाएं तलाश रहा है, उसकी संभावनाएं भी बहुत हद तक कारगर नीं हो सकती हैं। क्योंकि जिस अनुभव के साथ पाकिस्तान इस तरफ कदम बढाने की सोच रहा है, उसके पीछे कई व्यावहारिक जटिलताएं भी हैं। यह बात जगजाहिर है कि बड़ा देश होने के नाते सार्क में भारत का हमेशा दबदबा रहा है। पाकिस्तान इसे किसी भी रूप में हजम नहीं करना चाहता है, इसीलिए वह ग्रेटर साउथ एशिया के बो में सोच रहा है। इससे पाकिस्तान को लगता है कि नई व्यवस्था की वजह से भारत अपने फैसलों को उस पर नहीं थोप सकता है। भले ही इस प्रस्तावित व्यवस्था से चीन को कोई आपत्ति न हो, लेकिन इतना तो तय है कि अपनी सीमाओं से दूर जमीनी रूट से जुड़ने में श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश को कोई भी दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि श्रीलंका व बांग्लादेश के खुद के बंदरगाह हैं। इतना जरूर कहा जा सकता है कि प्रस्तावित नई व्यवस्था से भले ही अफगानिस्तान को फायदा पहुंचे, लेकिन वह भारत के साथ अपने रिश्ते नहीं खराब करना चाहेगा। लिहाजा यह कहना बहुत मुश्किल होगा कि वह पाकिस्तान के नये कूटनीतिक मोर्चे का समर्थन करेगा।
विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि अगर,पाकिस्तान का ग्रेटर साउथ एशिया का सपना पूरा हो भी जाता है तो इस बात की क्या गारंटी कि जो देश इसमें शामिल ोंगे, व्ो भारत के साथ तनाव के मसलों पर पाकिस्तान का साथ देंगे। पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान के अलावा ईरान की भी नाराजगी किसी से छुपी नहीं है।
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