परस्पर सहयोग के लिए जरूरी है सत्य, अहिंसा के मार्ग की प्रासंगिकता
इस बार गांधी जयंती ऐसे मौके पर पड़ी, जब भारत-पाक आमने-सामने हैं। पाकिस्तान परमाणु हथियारों के इस्तेमाल तक की बात कर रहा है। अहिंसा के पुजारी को ऐसे वक्त में याद करना कितना अलग-सा अनुभव दे रहा है। एक देश को आजादी दिलाने में जिस अहिंसा के मार्ग ने बड़ा रोल अदा किया था, ऐसे में छोटे-छोटे आंतरिक विवादों को सुलझाने में विनाशकारी परमाणु हथियारों तक की धमकी एक ऐसी सोच को जन्म देती है, जिसमें परस्पर सौहार्द, शांति, आपसी तालमेल और अहिंसा के लिए कोई भी जगह नहीं बचती है ? जब दुनिया भर में गांधी के विचारों की प्रासंगिकता को महत्व मिलना चाहिए, ऐसे में पाकिस्तान की विनाशकारी परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी एक देश के रूप में उसकी मैच्योरिटी को नहीं बल्कि उसकी बचकानी सोच को ही प्रदर्शित करता है।
गांधी के विचारों के साथ आगे बढ़ते हुए जहां भारत ने दुनिया में शांतिप्रिय और संम्प्रभु देश होने का बड़ा उदाहरण पेश किया है, वहीं, पाकिस्तान ने आंतकवाद के दलदल को चुन लिया और एक देश को आंतकवाद की शरणस्थली बना दिया। जिस आधुनिक दौर में शिक्षा, रोजगार और विकास की परिपाटी को आगे बढ़ाया जाना चाहिए था, ऐसे दौर में पाकिस्तान ने महज विनाशकारी हथियारों के बाड़े को बढ़ाए जाने व आंतकवादियों की संख्या बढ़ाए जाने भर की चिंता की। मसलन, आज उन्हीं आंतकवादियों के ईशारे में पाक की सत्ता भी चलती है। क्या यही चीज इस बात को प्रदर्शित करने के लिए काफी नहीं है कि पाक में न तो लोकतंत्र सुरक्षित है और न ही सत्ता ? इससे बड़ी चीज बेहतर मानव सोच भी ? जो एक देश के रूप में पाकिस्तान को उन देशों के साथ खड़ा करने का माद्दा रख सके, जो आधुनिक दौर में कई प्रारूपों में विकास का तानाबाना बुन रहे हैं। शिक्षा, रोजगार और आर्थिक ग्रोथ के विकल्पों पर तेजी से काम कर रहे हैं।
आंतकवाद मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन है। आखिरकार पाकिस्तान कब यह बात समझेगा। आंतकवाद के खात्मे के लिए जहां दुनिया भर के देश एकजुट हो रहे हैं, यह किसी से नहीं छुपा है कि पाकिस्तान की नीयत हमेशा से सवालों के घ्ोरे में रही है। यह कितनी शर्मनाक बात है कि पाकिस्तान महज भारत को ध्यान में रखते हुए आंतकवाद को बढ़ावा देता है। क्यों नहीं पाकिस्तान अपनी सोच से बाहर निकलना चाहता है ? जिस पैसे को वह आंतकवाद व आंतकवादियों को पालने-पोसने में लगा रहा है, उस पैसे का इस्तेमाल गरीबी, भूखमरी मिटाने में क्यों नहीं करता ? देश के अंदर शिक्षा व रोजगार के विकल्पों को बढ़ाए जाने में क्यों नहीं करता ? अगर, भारत की बराबरी में स्वयं को खड़ा करना चाहता है तो क्यों नहीं अपनी सोच को शांति, संप्रभुता व अहिंसा को बढ़ावा देने की तरफ लगाता है। परमाणु हथियारों की होड़ किसी भी स्थिति में अच्छी नहीं है। ऐसे विनाशकारी हथियारों को बेड़ा खड़ा करने में अगर दूसरों का नुकसान निहित है तो क्या इसमें स्वयं के नुकसान की संभावना नहीं है। इसका अनुमान स्वत: पाकिस्तान को भी लगा लेना चाहिए ? किसी भी विवाद का हल छलावे से नहीं, पीठ पर खंजर भोंकने से नहीं, निहत्थ्ो सोए हुए सैनिकों का लहू बहाने से नहीं बल्कि परस्पर बातचीत से निकलता है। ऐसे में सत्य, अहिंसा के मार्ग की प्रासंगिकता को अपनाना व समझना जरूरी है। तभी परस्पर सहयोग की भावना आगे बढ़ सकती है।
Good Article
ReplyDeletebahut sunder Greate Sir
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