कोविड के असर से जल्द मुक्त नहीं होंगे कामगार
- निकट
भविष्य में भी मजूदरी
पर चलती रहेगी कैंची
- आईएलओ
की नई ग्लोबल वेज
रिपोर्ट 2020-21 में जताई गई
है संभावना
कामगारों पर
कोविड-19 का असर जल्द
खत्म होगा, इसके आसार
बहुत कम हैं। निकट
भविष्य में भी इसका
कामगारों की मजदूरी पर
भारी दबाव बढ़ने की
संभावना है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम
संगठन यानि आईएलओ की
एक नई ग्लोबल वेज
रिपोर्ट 2020-21 में यह तथ्य
सामने आया है। ऐसा
माना जा रहा है
कि यह कामगारों की
आर्थिक रूप से कमर
ही नहीं तोड़ेगा बल्कि
इससे सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता की
विरासत को भी खतरा
पैदा हो होगा, जो
विनाशकारी होगा।
रिपोर्ट में
बताया गया है कि
कोविड-19 महामारी की शुरूआत से
पहले पाया गया था
कि भारत सहित दुनिया
के अन्य देशों में
जो लोग मजदूरी से
जुड़े हुये थे, उनमें
प्रतिघंटा कम कमाने वालों
की संख्या लगभग 15 प्रतिशत के आसपास थी,
लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान इसका
ग्रॉफ काफी बढ़ गया।
कम मजदूरी की बात तो
दूर, उन्हें रोजगार से ही हाथ
धोना पड़ा। अगर, उन्हें
अब काम मिला भी
है तो कम मजूदरी
पर काम करने का
दबाव उन पर भविष्य
में भी बना रहेगा।
कई स्थितियों में रोजगार हासिल
करने के लिये भी
उन्हें जूझना पड़ेगा।
ग्लोबल वेज
रिपोर्ट 2020-21 के तहत महामारी
से पहले के चार
वर्षों में 136 देशों में मजदूरी
के रुझान को भी
दर्शाया गया है, जिसमें
पाया गया कि वैकि
वास्तविक वेतन वृद्धि में
1.6 से 2.2 प्रतिशत के बीच उतार-चढ़ाव आया। वास्तविक
मजदूरी एशिया और प्रशांत
और पूर्वी यूरोप में सबसे
तेजी से बढ़ी और
उत्तरी अमेरिका और उत्तरी, दक्षिणी और
पश्चिमी यूरोप में बहुत
धीरे-धीरे। पर इस
महामारी के दौरान इस
उतार-चढ़ाव के बीच
गैप का अनुपात कई
गुना बढ़ गया, जिस
गैप को बहुत जल्द
भरना काफी मुश्किल होगा,
जिसका सबसे बड़ा नुकसान
कामगारों को ही उठाना
पड़ेगा। आईएलओ के महानिदेशक
गाय राइडर के अनुसार
कोविड-19 संकट से पैदा
हुई असमानता ने गरीबी को
बढ़ाया ही है बल्कि
इसने सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता की
विरासत को खतरे में
डाल दिया है, जो
विनाशकारी साबित हो सकता
है। उन्होंने कहा कि हमें
पर्या’ वेतन नीतियों की
आवश्यकता है, जो नौकरियों
और उद्यमों के बीच स्थिरता
को कायम रखने में
मदद्गार साबित होगा।
पुरूषों की
तुलना में महिलायें अधिक
प्रभावित
आईएलओ
की रिपोर्ट यह भी दर्शाती
है कि सभी मजदूर
संकट से समान रूप
से प्रभावित नहीं हुए हैं
बल्कि महिलाओं पर इसका असर
पुरुषों की तुलना में
अधिक हुआ है, जो
आने वाले दिनों में
भी जारी रहेगा। 28 यूरोपीय देशों
के नमूने के आधार
पर अनुमान लगाया गया है
कि मजदूरी सब्सिडी के बिना, महिलाओं
को पुरुषों की तुलना में
5.4 प्रतिशत की तुलना में
अपनी मजदूरी का 8.1 प्रतिशत का नुकसान होगा।
50 फीसदी
मजदूरों को 17.3 प्रतिशत मजदूरी का नुकसान
कहते
हैं ना, किसी भी
संकट की पहली लात
कमजोर पर ही पड़ती
है। ऐसा ही कोविड-19
महामारी के दौरान हुआ।
मजदूर वर्ग में भी
जो निचले यानि कम
भुगतान पर मजदूरी कर
रहे थे, वे अधिक
प्रभावित रहे। रिपोर्ट के
मुताबिक कम-कुशल व्यवसायों
में उन्होंने उच्च-भुगतान वाली
प्रबंधकीय और पेशेवर नौकरियों की
तुलना में अधिक काम
के घंटे खो दिये
थे और सबसे कम
भुगतान किए गए 50 प्रतिशत
श्रमिकों को अनुमानित 17.3 प्रतिशत मजदूरी का
नुकसान हुआ।
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