सपा का सस्पेंस खत्म होने से बदले चुनावी समीकरण



 यूपी का चुनावी घमासान इस बार कुछ ज्यादा ही दिलचस्प होने वाला है। जिन चीजों को लेकर सस्पेंस बना हुआ था, लगभग वह साफ हो चुका है। सपा के बीच चल रहे घमासान को विराम मिलने के बाद चुनावी समीकरणों में बहुत ज्यादा नहीं तो थोड़ा-बहुत परिवर्तन अवश्य दिख्ोगा। कुल मिलाकर इसमें अखिलेश यादव को फायदा मिलने की संभावना तो साफ-साफ बन रही है। इसका नुकसान झेलने के लिए निश्चित तौर पर बसपा को तैयार रहना होगा।
   जिस तरह के परिणाम सपा के संबंध में चुनाव आयोग की तरफ से आए हैं, उससे तो एक बात स्पष्ट है कि मुलायम सिंह वाकई राजनीति के चतुर खिलाड़ी रहे हैं। उनके बारे में यूं ही नहीं कहा जाता है कि उन्हें समझना मुश्किल ही नहीं ना-मुमिकन भी है। इस मोर्चे पर भी यही चीज साबित होकर सामने आई है। उन्होंने अखिलेश को राजनीतिक विरासत सौंपने का जो उपाय निकाला, वह हर उस शख्स के मुंह में तमांचे के की तरह है, जो या तो पार्टी को तोड़ने का सपना देख रहे थ्ो या फिर बाप-बेटे के बीच झगड़ा कराकर अपना हित तलाश रहे थ्ो, लेकिन चुनाव आयोग की तरफ से आये परिणामों में ऐसे लोगों का हित तो नहीं हुआ, लेकिन मुलायम और अखिलेश यानि बाप-बेटे का हित अवश्य हो गया। 
अखिलेश को राजनीतिक विरासत भी मिल गई और मुलायम से अब सीध्ो तौर कोई यह सवाल भी नहीं कर सकता है कि ये आप क्या कर रहे हैं ? सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। यह कहावत इस गेम में साफ झलकती है। ख्ौर, अब पर्दा हट चुका है तो कुछ चुनावों की बात कर लें। सपा को फिलहाल साइड करें तो बीजेपी के अलावा बसपा भी लखनऊ की सत्ता फतह करने का सपना पाले हुए है। सपा के झगड़े में बसपा को फायदा मिलने के आसार दिख रहे थ्ो, लेकिन जिस तरह बाप-बेटे के बीच पेंचअप हो गया है, उससे बसपा को सबसे अधिक नुकसान होगा। पार्टी ने जिस तरह वोटरों को रिझाने के लिए टिकटों के बंटवारे में संतुलन बनाने का प्रयास किया था, वह भी बहुत अधिक कारगर होगा, इस बात की संभावना बहुत कम रहेगी। बीएसपी ने अपने 97 टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को बांटे हैं और कथित ऊंची जातियों के उम्मीदवारों को 113 सीटें सौंपकर बीजेपी के कोर वोटर तोड़ने का रास्ता प्रशस्त करने की कोशिश की है। जहां तक बीजेपी को सवाल है, उसके लिए भी चुनौती हल्की नहीं होगी। 
खासकर, नोटबंदी के बाद जिस तरह किसानों को नाराज बताया जा रहा है, वह पार्टी के लिए चिंता पैदा करने वाली बात अवश्य है। सपा और कांग्रेस के बीच पेंचअप भी बीजेपी के अलावा बसपा के लिए भी चुनौती को कठिन करने वाली है। अब पार्टियों का सारा ध्यान चुनाव पर ही होगा। बीजेपी और कांग्रेस ने कई जगहों पर अपने प्रत्याशी घोषित नहीं किये हैं, ऐसे में यह भी नुकसानदेह साबित होगा, क्योंकि चुनावों का कम समय रह जाने की वजह से प्रत्याशियों को तैयारियों की जल्दबाजी रहेगी। वोटरों की नब्ज को भंपाने वक्त लगता है, ऐसे में जितनी जल्दी हो तो उन पार्टियों को अपने सभी प्रत्याशियों की घोषणा कर देनी चाहिए, जिन्होंने अभी तक यह काम पूरा नहीं किया है।


No comments