सपा का झगड़ा : जहां उलझनें वहां परेशानी


   देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सत्ता पार्टी का अंदरूनी झगड़ा खत्म नहीं होने वाला है। इसके क्या नतीजे आएंगे, इसका अभी इंतजार तो करना ही होगा, लेकिन इतना तो साफ दिख रहा है कि सुलह मुश्किल है। दोनों पक्षों के बीच जिन मुद्दों पर तनातनी है, उसमें कोई भी पीछे नहीं हटना चाहता है, ऐसे में सुलह की कोशिश्ों किसी तरह से कायमाब नहीं हो सकती हैं। बशर्ते, अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में है कि वह साइकिल के बारे में क्या करेगा। 
  संभवत: यह सोमवार को तय हो जाए, लेकिन कुल मिलाकर इस झगड़े का गणित यही कहता है कि इसका नुकसान सपा को अवश्य झेलना पड़ेगा। इससे न केवल पार्टी का झगड़ा और बढ़ेगा, बल्कि प्रदेश की सत्ता में फिर से काबिज होने का सपा को जो सपना है, वह भी चकनाचूर हो जायेगा। यह देखना अधिक दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में किस तरह के समीकरण सामने आते हैं। अभी असली चीजें पर्दे के पीछे छुपी हुईं हैं। जिस तरह मुलायम सिंह यादव ने रविवार को प्रदेश कार्यालय पर ताला जड़ा और अपनी व शिवपाल यादव की नेमप्लेट चस्पा की। और उसके बाद दिल्ली पहुंचे। दिल्ली पहुंचने के बाद भी जो तस्वीर सामने आई, शायद वह किसी भी रूप में अखिलेश गुट को रास नहीं आई होगी।
  अखिलेश गुट को अमर सिंह और शिवपाल यादव को लेकर शिकायत है, लेकिन ये दोनों ही नेता मुलायम सिंह यादव के साथ मौजूद रहे। इसके बाद मुलायम ने जो कहा, उससे भी सुलह के संकेत किसी भी रूप में सामने नहीं आ सकते हैं। उन्होंने कहा कि सबकुछ तो अखिलेश के पास है, मेरे पास तो गिनती के विधायक हैं। लड़का तो मेरा ही है, जो कर रहा है करने दीजिए। कार्यकर्ताओं से भी कहा कि जो सूची मैंने जारी की है, उनके प्रचार-प्रसार में जुट जाइये। यहां सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि इस झगड़े से यादव कुनवा तो कमजोर हुआ ही है, बल्कि पार्टी को भी भारी नुकसान हुआ है। इससे बड़ी उलझन उन कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों के लिए है, जो लंबे समय से पार्टी के लिए मेहनत कर रहे हैं। उन्हें तो यह भी समझ नहीं आ रहा है कि आखिर करें तो करें क्या ? किस ख्ोमे का हाथ पकड़े और किस खेमे का हाथ छोड़े ? किसी भी पार्टी के लिए कार्यकताã रीढ़ का काम करते हैं, अगर उनके पास चलने के लिए स्पष्ट रास्ता ही नहीं होगा तो वे क्या करेंगे? यही चीज पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित होगी, लेकिन जिस तरह अब चीजें उलझती जा रही हैं, उससे तो यही लगता है कि न ही कार्यकताã उस जोश के साथ प्रचार-प्रसार कर पाएंगे और न ही वोटर पार्टी के प्रति स्पष्ट राय रखने की जरूरत समझेगा, क्योंकि जहां उलझन होती हैं, वहां निश्चित तौर पर परेशानी का ही रास्ता प्रशस्त होता है।
   इसीलिए बहुत सी मौलिक चीजों पर पहले ही विचार कर लिया जाना चाहिए था। चाहे वह मुलायम सिंह ही क्यों नहीं हैं, उन्हें समय रहते अपनी भूमिका को तय कर लेना चाहिए था, क्योंकि आने वाले समय में भी उन्हें ऐसा करना ही पड़ेगा कि आखिर वह पार्टी की विरासत किसके हाथ सौंपेंगे। जिस तरह मुलायम राजनीति के चतुर खिलाड़ी रहे हैं, ऐसे में उन्हें इस मौके पर आपसी झगड़े में उलझने के बजाय ऐसी चतुराई दिखानी चाहिए थी, जिससे पार्टी की स्ट्रीम लाइन उलझी न रहे बल्कि उसका रास्ता भविष्य के लिए भी साफ हो जाए।


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