आरक्षण का पिंड कैसे छुड़ाएगी बीजेपी ?


  आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य द्बारा आरक्षण पर आए बयान के बाद तूफान ही मच गया। विरोधियों को तो जैसे मुद्दा ही मिल गया कि किस प्रकार यूपी व अन्य प्रदेशों में उसकी नैया डूबाई जाए, लेकिन वैद्य ने स्थिति को भांपते हुए अपने बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की बात कही, लेकिन इसे संयोग कहे या फिर कुछ और बिहार में जब विधानसभा चुनाव हो रहे थ्ो तो उससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर बयान दिया था। 
  बीजेपी की हार के बाद माना गया था कि भागवत के उस बयान की वजह से बीजेपी को बिहार में हार का मुंह देखना पड़ा। देश में बिहार और उत्तर प्रदेश दो ऐसे राज्य हैं, जहां चुनावों में जातिगत समीकरणों का बड़ा असर देखने को मिलता है। जब उत्तर प्रदेश में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में संघ की तरफ से आरक्षण को लेकर आया बयान महत्व रखता है, क्योंकि कहीं-न-कहीं आरएसएस की विचारधारा वाली पार्टी की सरकार सत्ता में आएगी तो निश्चित तौर पर उनके लोगों के दिमाग में यह बात रहेगी कि अमुख पार्टी तो आरक्षण के खिलाफ है, ऐसे में मतदाता यह कोशिश करेंगे कि किस तरह से पार्टी को सत्ता की पहुंच से दूर किया जाए। भले ही यह बयान राजनीतिक तौर पर बीजेपी को नुकसान पहुंचाने वाला हो, लेकिन विपक्षियों के लिए तो यह संजीवनी की तरह है, क्योंकि उनके पास इससे बड़ा मुद्दा और हो ही नहीं सकता है। जब यूपी में आरक्षण के तहत आने वाले जातियों की तादाद बहुत ज्यादा हो। 
  इस मामले में बसपा न कूदे, ऐसा तो ही नहीं सकता है। हुआ भी वही। बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि आरक्षण खत्म किया गया तो बीजेपी को दिन में ही तारे गिनवा देंगे आदि...। यह बात मायावती ने चेतावनी भरे लहजे में कही थी। उन्होंने कहा कि दलित वर्ग के लोग इस फैसले पर बीजेपी को हमेशा-हमेशा के लिए राजनीति करना भुला देंगे। आरक्षण देश की और दलित की दोनों की बर्बादी है। माया ने कहा कि बीजेपी और आरएसएस को देश में दलितों की आबादी का अंदाजा नहीं है। उन्होंने कहा कि चुनाव में जनता बता देगी कि इन्हें पता नहीं कि इनकी आबादी कितनी है। उन्होंने बीजेपी को सुझाव देते हुए कहा कि बीजेपी को आरक्षण खत्म करने की बंदर की तरह घुड़की देना बंद करना चाहिए। उधर, मैदान में लालू प्रसाद यादव भी कूद पड़े। उन्होंने भी आरएसएस और बीजेपी को निशाने पर लेते हुए कई आरोप लगाए।
   बात का बतंगड होते देख, भले ही आएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने यह कहा कि वह संविधान में प्रदत्त आरक्षण को स्वीकार करते हैं और उसे लागू होना भी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी बात को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, भले ही आमजन उनकी बात को मान ले, लेकिन चुनावों में विपक्षी पार्टियां इस बात को कितना मानेगी, इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। जब चुनावी मैदान में भिडंत हो तो इसकी संभावना तो कहीं भी नहीं दिख सकती है। बीजेपी के खिलाफ इस मुद्दे को मोर्चे के तौर पर हर विपक्षी पार्टी लेगी। अगर, यूपी में विपक्षी पार्टियों द्बारा यह प्रयोग किया जाएगा तो उसके अलावा और राज्य हैं, जहां इसी दौरान चुनाव होने हैं। वहां भी विपक्षी पार्टियों के नेता इस मुद्दे को अवश्य भुनाएंगे।


No comments